सम्मान की खातिर।
कौन कहता है यहाँ बस जीत की खातिर लड़ो
कौन कहता है यहाँ बस प्रीत की खातिर अड़ो
एक बस सम्मान तेरा वक्त की पहचान है
जो अड़ो तुम आज तो सम्मान की खातिर अड़ो।
पूर्व पथ चुनने से पहले पथ की पहचान कर
पंथ के सब रोक का तू पूर्व ही अनुमान कर
कौन रोकेगा तुझे जब दृढ़प्रतिज्ञ हो चल पड़ा
पंथ के हर मोड़ का बस तू यहाँ सम्मान कर।
कितनी जवानी त्याग दी आज तक ना लिख सकीं
औ कहानी त्याग की ना पुस्तकों में छप सकीं
शोक क्या करना यहॉं जो कोई सुप्तप्राय है
नक्कारखाने में तूती की व्यथा कब सुन सकीं।
कौन कहता है तुझे आघात सारे भूल जाओ
और दिल ने जो सहा वो घात सारे भूल जाओ
था बुरा या के भला अब ये बात सारी व्यर्थ है
शोक करना क्या यहाँ अब इनका ना कोई अर्थ है।
आज फिर चलने से पहले रास्तों को जान ले
कौन अपना या पराया आज तू पहचान ले
है तेरा अधिकार इनपर ये ही तेरे मीत हैं
और जिंदगी के रास्तों के ये ही तेरे गीत हैं।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16नवंबर,2020
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