चुप को हथियार बना।

चुप को हथियार बना।   

चुप को अब हथियार बना
चुपचाप यहां रहना होगा
मन की सारी पीड़ाओं को
चुपचाप यहां कहना होगा।

आवाजों का शोर बहुत जब
फैला हो दरबानों में
लगे भटकने मुखर चेतना
सांझ ढले मैखानों में।

तब चुप को हथियार बना
प्रतिकार यहां करना होगा
मन की सारी पीड़ाओं को
चुपचाप यहां कहना होगा।

संवादों का दौर बहुत है
संवाद नहीं पर दिखता है
संसाधन के आगे क्या
खबरनवीस कहीं झुकता है।

लेकिन जब खबरों की दुनिया
मौलिक राह भटकती है
लिए मशाल हाथ मे तब
उजियार यहां करना होगा।

खबरों की नैतिकता पर जब
शंका के बादल छाते हैं
लोकतंत्र दिग्भ्रमित हुआ तब
कुटिलता प्रश्रय पाते हैं।

खबरों के व्यवहारों पर
विचार पुनः करना होगा
नहीं मिले जब राह कोई
प्रतिकार हमें करना होगा।

लोकतंत्र में चुप्पी भी है
जनता का हथियार बड़ा
इसे बनाकर शस्त्र यहां
कितनों ने है युद्ध लड़ा।

मुश्किल हो जब कहना कुछ भी
मौन भाव से कहना होगा
इसको ही हथियार बनाकर
कुत्सित से फिर लड़ना होगा।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       02अक्टूबर,2020

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