कैसे सुनाऊं कोई गीत तुमको।

कैसे सुनाऊं कोई गीत तुमको।  


अभी क्या सुनाऊं कोई गीत तुमको
है सरगम अधूरी, बताऊँ क्या तुमको
ये दुनिया के मेले अधूरे अधूरे
मैं कैसे सुनाऊं कोई गीत तुमको।

सांसें सिसककर कोई गीत गाती
बिखरे पलों की कहानी सुनाती
ये भींगीं पलकें ये अधरों की कंपन 
बीता हुआ कोई मंजर दिखाती।

के वो जो करीबी में दूरी बनी है
कहीं आग मुझमें औ तुममें ठनी है
मिटा के न रख दे कहीं आग हमको
मैं कैसे सुनाऊं कोई गीत तुमको।

कल जो भी सीखा था मैंने जहां से
नहीं काम आया वो मेरे यहाँ पे
अधूरी है महफ़िल अधूरा तराना
अधूरा ही शायद रहे ये फसाना।

हैं संगीत मेरे अधूरे अधूरे
होंगे कहीं क्या कभी ये भी पूरे
जब तक मिलेगी ना राह हमको
मैं कैसे सुनाऊं कोई गीत तुमको।

नहीं नाज हमको अब दुनिया जहां पे
नहीं नाज हमको तेरे गुलसितां पे
है बस नाज हमको अपने गमों पे
वही साथ मेरे चले हैं सफर पे।

जब तक सफर हो न जाये ये पूरा
रहूंगा मैं शायद अधूरा अधूरा
मिलेगी जब तक मंजिल न हमको
मैं कैसे सुनाऊं कोई गीत तुमको।।
 
जीवन के मुश्किल सफर पर चलूं जो
मेरे साथ क्या दो कदम तुम चलोगे
है मंजूर तुमको ये सोहबत हमारी
यही बात क्या तुम जहां से कहोगे।

तुम्हारे बिना मैं अधूरा अधूरा
तुम्हें पा के हो जाऊंगा पूरा पूरा
इक बार जो अपनी आंखों से कह दो
तो फिर सुनाऊं कोई गीत तुमको।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      12अक्टूबर,2020

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