बात कहने की नहीं है।
मौन भी कैसे रहूं मैं
बात जो दिल में दबी है
मौन वो कैसे सहूँ मैं ।।
तकरीर जो तुमने गढ़ी
जब फैसले की रात थी
तब मेरे दिल ने जाना
जो दिल मे तेरे बात थी।।
दिल के सारे मुआमलों को
खत्म मैंने कर दिया था
पर बात तेरी जब भी चली
तब मौन सब जज्बात थे।।
सांझ का था धुँधलका औ
था घना कुहरा वहां पर
दीप की इक लौ जली थीं
पर बंद रोशनदान थे।।
टिमटिमाया था दिया तब
शायद घनेरी रात थी
दम घुटा जब रोशनी का
तन्हा सभी हालात थे।।
और क्या कहना वहाँ जब
रोशनी ही छुप गयी थी
रात की चादर तनी औ
बादलों में बैठा चाँद था।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28नवंबर, 2020
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