फिर सोचना होगा।
कलम की नोक से तलवार को अब तोड़ना होगा
नदी की धार को भी इस तरह ही मोड़ना होगा।।
बहुत सुन चुके ताने कितने शिशुपालों के अब तक हम
सुदर्शन चक्र जैसा कुछ हमें भी छोड़ना होगा।।
रहे हैं सेंकते जो रोटियां अब राजनीति की
उन्हें स्याही की ताकत से हमें अब रोकना होगा।।
शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता के रक्षण की खातिर
पल रहे सारे कुचक्रों को हमें अब तोड़ना होगा।।
प्रश्न उठेंगे किंचित कहीं किसी दरबानों से जो
होकर अटल आज उसका हल खोजना होगा।।
इक धागे में पिरो सके जो सारे भारत को
ऐसा कोई नवगीत हमे अब सोचना होगा।।
जन गण मन के भावों को जो आह्लादित कर दे
फिर ऐसा नूतन राष्ट्रगीत हमें अब सोचना होगा।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19अक्टूबर,2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें