फैली हों अपनी राहें।

 फैली हों अपनी राहें।


चलो चलें उस ओर जहां तक

फैली हों अपनी राहें

चलो चलें हम आज वहां तक

फैलाकर अपनी बाहें।


चंद पलों के जीवन सारा

अवसादों में ना तोलो

मिलो आज तुम सबसे खुलकर

दिल की सारी बातें बोलो।


जब नेपथ्य में नहीं, कुछ भी

फिर क्यूँ आज झुकी निगाहें।

चलो चलें उस ओर जहां तक

फैली हों अपनी राहें।।


सीमित संसाधन हैं अपने

माना सब कुछ पास नहीं

मगर हौसलों की पाँखी है

थकने का अहसास नहीं।


लिए हौसले आज चलें तो

निकलेंगी नूतन राहें।

चलो चलें उस ओर जहां तक

फैली हों अपनी राहें।।


जीवन सारा खिल जाएगा

सपना भी सब मिल जाएगा

हँसकर जब इक बार उठेगा

उपवन सारा खिल जाएगा।


सपनीली इस दुनिया की

तब होंगी तेरी ओर निगाहें।

चलो चलें उस ओर जहां तक

फैली हों अपनी राहें।।


 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय

       हैदराबाद

       14अक्टूबर,2020

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