प्रणय निवेदन।

  प्रणय निवेदन।    

इन नैनों की चितवन ने
मन का मेरे संधान किया
सकुचाई पलकों ने मेरी
इच्छाओं का मान किया।

तेरे संकर्षण ने मुझको
एक नया दिनमान दिया
सकुचित स्तंभित भावों ने
लज्जा को सम्मान दिया।

उर से उठती प्रेम तरंगें
नूतन भाव जगाती हैं
प्रेम मिलन की बेला में
बिन कहे बहुत कह जाती हैं।

अपनी पलकों के साये में
मुझको तुम अब रहने दो
कही गयी ना बातें जो भी
मुझको वो सब कहने दो।

तुम्हें समर्पित जीवन अब ये
तुम इसको स्वीकार करो
अपने अधरों के कंपन से
मस्तक पर उपकार करो।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       13नवंबर,2020



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