धैर्य व संयम।

धैर्य व संयम

धैर्य शीलता औ संयम का
दिखता आज अभाव यहां
हर कोई व्याकुल लगता है 
कैसा आज प्रभाव यहां।

त्वरित चाहते सब निर्णय
अभाव धैर्य का दिख रहा
संबंधों में भी अब शायद
प्रभाव इसी का दिख रहा।

वेब कल्चर नाम पे देखो
बाजार सजाये बैठे हैं
संस्कृति, शिक्षा, सभ्यता को
खुलेआम लुटाए बैठे हैं।

धर्म, नैतिकता का परिहास
उन्हें प्रभावी दिखता है
पैसों की खातिर शायद
क्या चरित्र यहां पर बिकता है।

फिल्में समाज में लोगों को
बेहतर शिक्षा दे सकती हैं
देश, धर्म व मानवता को
पहचान नया दे सकती हैं।

पर भौतिकता की दुनिया में
नैतिकताएं बोल नहीं पाती
धनलोलुपता जब हावी हो 
सभ्यताएं मोल नहीं पाती।

आगे बढ़ने की चाहत में
कितना पीछे छूट रहा
नैतिकता के सारे मानक
इक इक करके टूट रहा।

झुलस रही है आज यामिनी
शीतल पवन झँकोरे से
भटक रही है राह दामिनी
बादल के अंधेरों से।

बेहतर होगा त्याग वर्जना
संयम को मनमीत बना
सत की राहों पर चलकर तू
नूतन अपना गीत बना।

सुनो नाद निर्झरों के सारे
पर प्रवाह चुन तू खुद का
पूण्य पंथ को प्रशस्त करे जो
पंथ बना उसको खुद का।

आलिंगन में भरे मानवता
मनुजता अंगीकार करो
सूखी धरती को जो तारे
ऐसी तुम बौछार करो।

उदघोष करो पांचजन्य का
मन में पर परमार्थ रहे
स्वयं सारथी होंगे केशव
कुरुक्षेत्र का पार्थ बनो।

तेरा ये संयम ही नूतन
यशोगान लिख पायेगा
विश्व शांति का सपना तेरा 
सब नैनों में दिख पायेगा।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद 
         07अक्टूबर,2020

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