जागो हे भारत।

  जागो हे भारत।  

तड़प रही है आज लेखनी
फिर आवाज़ उठाने को
मचल रही है आज भावना
फिर से अलख जगाने को।

स्याही में अंगार भरे
भावों को प्रतिपादित कर
तोड़ गुलामी की जंजीरें
अवनी को आह्लादित कर।

नैनों में ज्वाला है तेरे
हाथ में तेरे कलम कटार
कुंद नहीं कहीं पड़ जाए
तेरे जिह्वा की ललकार।

आज दामिनी कुंद पड़ रही
खो रही क्यूँ अपनी धार
रण चण्डी हुंकार भर रही
युद्ध प्रचण्ड है अबकी बार।

भारत माता चली भेदने
अनाचार के सीने को
काली का फिर रूप धरा
रिपु का शोणित पीने को।

जागो हे मतवालों जागो
भारत के दीवानों जागो
जागो धरती चीख रही है
चिर निद्रा से सारे जागो।

जागो दसों दिशाओं जागो
वेदों की सभी ऋचाएं जागो
जागो पांचजन्य माधव का
भीम की बलिष्ठ भुजाएं जागो।

अर्जुन का गांडीव अब जागो
युधिष्ठिर का भाला जागो
सूरज भी अब अस्त हो रहा
अब तो चक्र सुदर्शन जागो।

श्री राम का कोदंड जागे
फिर केशव का शारंग जागे
जागे आज पिनाक यहां
चिर निद्रा से भारत जागे।

विदुर की फिर से नीति जागे
कौटिल्य का क्रोध फिर जागे
गांधी जी का सपना जागे
फिर से भारत अपना जागे।

शंखनाद हो आज यहां
रणभेरी बन जाना है
नैतिकता की मशाल पुनः
दिल में आज जगाना है।

आज कवच बन जाना है
भारत माँ के सीने का
वर्ना कोई अर्थ नहीं है
कायर बन कर जीने का।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
     हैदराबाद
     01अक्टूबर,2020








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