जीवन जीना सीख लिया।
नव पल्लव को शाखों पर
हमने खिलते देखा है
कलियों औ फूलों को भी
अकसर मिलते देखा है।
रश्मि भोर की किरणों से
कुहरा छँटते देखा है
नव प्रभात के शंखनाद से
अँधियारा मिटते देखा है।
नदियों को उद्गम स्थल पर
कल कल चलते देखा है
औ सांझ ढले बेला में
सागर से मिलते देखा है।
अकसर फूलों को हमने
शाखों से गिरते देखा है
और कभी पंखुड़ियों को
फूलों से झरते देखा है।
बसंत ऋतु के आते ही
सारा उपवन खिल जाता है
लेकिन पतझड़ के मौसम में
उनका भी उजड़न देखा है।
मिलना और बिछड़ना दोनों
जीवन की मजबूरी है
पास रहें या दूर रहें हम
आपस में प्रेम जरूरी है।
आंखों का आंसू से अपने
कितना सुंदर नाता है
लेकिन अवसादों के क्षण में
उनका बिछड़न देखा है।
छोटी-छोटी खुशियों में हम
जब इक दूजे से जुड़ते हैं
कोई कैसी राह चले पर
सब इक दूजे से जुड़ते हैं।
जीवन के इस मौसम को
जिसने भी हँसकर देख लिया
उसने ही बस जीवन समझा
औ उसको जीना सीख लिया।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11नवंबर, 2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें