मन तो चातक ठहरा।

मन तो चातक ठहरा।

हैं अनिभिज्ञ सभी यहां पर
अगले पल का ज्ञान नहीं
मनवा भी इक पंछी ठहरा
कब उड़ जाए ज्ञात नहीं।

इस डाली से उस डाली तक
उड़ उड़ कर वो बैठ रहा
स्थिर वो कब रहा यहां पर
कितने दर पर बैठ रहा।

कोई कहता मंदिर-मस्जिद
कोई गिरजा औ गुरुद्वारा
कोई कहता ध्यान लगाओ
लोभ मोह से हो छुटकारा।

ज्ञान योग की कितनी बातें
हम सबको बतलाती हैं
स्वर्ग नर्क की परिभाषाएं
नित हमको उलझाती हैं।

मनवा, पर चातक ठहरा
चैन कहां वो पाता है
मिलता उसे सुकून जहां
बस उसका हो जाता है।

इसीलिए सब कहते हैं
खुल कर हर पल जी लेना
जीवन के हर पहलू को
खुल कर के तुम जी लेना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      30सितंबर,2020

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