मजदूर की इच्छा।

एक प्रयास , बस यूं ही-


*मजदूर की इच्छा।*      

तंग गली का जीवन मेरा
तुम महलों के वासी हो।
हम धरती पर रहने वाले
तुम देवलोक निवासी हो।। 

तिनका तिनका जोड़ रहा हूँ
खुद को खुद में खोज रहा हूँ
खाऊं और बिछाऊं क्या
मन ही मन ये सोच रहा हूँ।

जी करता है मैं भी बोलूँ
पर यायावर वनवासी हूँ।
तंग गली का जीवन मेरा
तुम महलों के वासी हो।।

राह अकेले चलते देखा
भूख-प्यास को मरते देखा
इच्छाओं को जीवन में
पल पल रंग बदलते देखा।

नहीं चाहता धन औ दौलत
खुशियों का अभिलाषी हूँ।
तंग गली का जीवन मेरा
तुम महलों के वासी हो।।

मेरे दिन तेरी रातों में
बस इतना सा अंतर है
तुझे उजाला देने को
हमने पिया समंदर है।

इस अंतर के कई मायने
पर थोड़ा सा ध्यान धरो
मानव को मानव समझो
मानवता का सम्मान करो।

रंग लहू का एक यहां जब
फिर क्यूँ यहां उबासी है।
तंग गली का जीवन मेरा
तुम महलों के वासी हो।।

 *✍️©️अजय कुमार पाण्डेय* 
       *हैदराबाद* 
       *26अक्टूबर,2020*

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...