मैं चला हूँ।
आज जग के ताप को
मैं मिटाने को चला हूँ
बंधनों औ रोक को
मैं हटाने को चला हूँ।
आज नूतन भाव ले
सुर सजाने को चला हूँ
और अपने गीत से
उर रिझाने को चला हूँ।
है सफर मुश्किल मगर
आज तय करने चला हूँ
हार हो या जीत हो
स्वीकारने मैं चला हूँ।
प्यार, करुणा औ दया
का यहाँ पारावार है
रण ये पुण्य पंथ का
जो भी मिले स्वीकार है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11नवंबर, 2020
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