राष्ट्र प्रथम।

     राष्ट्र प्रथम। 

हार जीत का ये अंतर
आज है कुछ कह रहे
सोच औ राहें मुड़ी हैं
अभिव्यंजनाएँ ढह रहे।

है चल रही ऐसी पवन
के राह निश्चित दिख रही
औ भविष्य के बर्ताव की
परिमाण' भी अब लिख रही।

सोचिये अब आज हमसे
चूक कैसी हो रही है
हर घड़ी मन प्राण से अब
भूल कैसी हो रही है।

वर्जनाओं तक को हमने
विजय से आज जोड़ रखा
नैतिकताओं को हमने
ताखों" पर है छोड़ रखा।

परचम धर्म और जाति का
चहुँओर बस लहरा रहा 
राष्ट्रहित का भाव भी अब
क्या गौण होता जा रहा।

वक्त रहते आज हमको
चिंतन यहाँ करना होगा
हिंदुस्तान के पर्याय का 
रक्षण यहाँ करना होगा।

एक सूत्र एक भाव का
सिद्धांत केवल राष्ट्र है
जो प्रगति को मोक्ष दे वो
वृद्धान्त"' केवल राष्ट्र है।।

 ' परिमाण- मापन
" ताखों- दीवार में कुछ रखने हेतु बनाई गई जगह
"' वृद्धान्त- प्रतिष्ठा करने योग्य 

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
     हैदराबाद
     12नवंबर,2020


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