आज कहना होगा।

आज कहना होगा।     

गर निकली है बात यहां
तो बात आज कहना होगा
जो बीत रही है सपनों पे
कब तक उसको सहना होगा।

सुनते तो हैं, पर दिखे नहीं
था पढा कहीं, पर लिखे नहीं
डटने की बातें खूब करी
मौके पर लेकिन डटे नहीं।

कोरी बातों से क्या हासिल
अब तो कुछ करना होगा।
गर निकली है बात यहां
तो बात आज कहना होगा।।

आज धरातल को लगता है
सूरज खूब चिढ़ाता है
खुद बादल की ओट छिपे है
जग को बस भरमाता है।

इसकी आंख मिचौली को अब
दीप यहां दिखलाना होगा।
गर निकली है बात यहां
तो बात यहां कहना होगा।।

अपने प्रकाश की खातिर
तारे सारे मिल जाते हैं
रात अंधेरी घनी भले हो
इक दूजे को राह दिखाते हैं।

धरती पर अब नजर करो
खुलकर के अब कहना होगा।
गर निकली है बात यहां
तो बात आज कहना होगा।।

धरती की नीलामी करते
अपना आकाश बचाते हैं
माटी पर ना पैर पड़े
इसलिए धूल हटवाते हैं।

पर आंखों में पड़ी धूल को
साफ आज करवाना होगा।
गर निकली है बात यहां
तो बात आज कहना होगा।।

कह दो, देर नहीं हो जाये
अवनी, अंबर ना बिक जाए
बेमौसम उन्मादों से 
धरती अपनी ना फट जाए।

अवनी-अंबर सबका है
अब बात यहां कहना होगा।
गर निकली है बात यहाँ
तो बात आज कहना होगा।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
     हैदराबाद
     18अक्टूबर,2020

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