सप्तपद- मौन अधरों के गीत।
जिंदगी के मोड़ पर जब नव प्रीत की आस लिए
कुछ बंधनों को छोड़ एक नया विश्वास लिए
भोर की पहली किरण से भाव मुस्काने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।
अंजुली भर कर नीर ले पुण्य का आशीष ले
मंत्रों के उचार में मृदु कामना की प्रीत ले
अक्षतों का रंग ले और कर पुष्प की पाँखुरी
आस का आकाश ले ओढ़ माथ लाल चूनरी
यज्ञ के ज्वाल में मुख खिला जैसे स्वर्ण का कमल
भाव का विस्तार में समाहित हो गया हो पल
उस एक पल में ही सारे सत्य सिमटने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।
रात के आकाश में झूमे चाँद की चाँदनी
लाज के अंक में सिमटी जा रही है मोहनी
तारे गगन के सभी बाराती बन झूम रहे
झूम रश्मियाँ चाँद की कपोलों को चूम रहे
मस्त मस्त सी पवन शुभ गीत यहाँ गा रही
रात रानी खिल गयी मन भाव को महका रही
ओस की मृदुल छुअन में भाव गुनगुनाने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।
देख मृदुल रूप कितने स्वप्न नव मचलने लगे
नैन के कोरों पे कितने भाव थिरकने लगे
थरथराते होठों से सप्तपदों को बाँचना
रश्मि किरणों में लिपट कर झिलमिलाती कामना
रूप के श्रृंगार की साकार होती कामना
यूँ लगे जैसे देव भी कर रहे हों याचना
इक नया उत्साह मन के भाव महकाने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।
सप्तपदी का वचन विश्वासों का आधार है
नेह का आकाश है अरु प्रेम का आधार है
कृष्ण का ये प्रेम है श्री राम का ये आस है
रुक्मिणी का पत्र है अरु सीता का विश्वास है
अंजुली में समाये वो प्रीत का आकाश है
प्रेम के मृदु ग्रंथ के प्रिय शब्द का अनुप्रास है
दसों दिशाएं झूम झूम गीत प्रिय गाने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।
भोर की पहली किरण ने शब्द हौले से कहा
है ये नव श्रृंगार के पल कानों में आकर कहा
मिल लिखेंगे गीत नव जिंदगी के मृदु पलों के
प्रेम के विश्वास के अर्पण का नव संकल्प लें
चाँद तारे धरती गगन सब आज साक्षी बने
वेद मंत्रों ऋचाओं में भाव आकांक्षी बने
सप्तपदी के वचन सभी झूम कर गाने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03दिसंबर, 2021