मेरा अस्तित्व।
एक प्रश्न उछला कहीं से थी कहीं उसमें रवानी
पूछने मुझसे लगा मेरे अस्तित्व की कहानी।।
कौन हूँ मैं कौन हो तुम प्रश्न अहर्निश चल रहा है
सबके मन में भावों में द्वंद जैसे पल रहा है
है कोई एहसास या फिर भावनाओं की छुअन
प्रश्न का आकार ले जो स्वयं से ही मिल रहा है।।
नित्य गहराती घनेरी परतों की यहाँ पर बदलियाँ
पूछने मुझसे लगीं मेरे अस्तित्व की कहानी।।
स्वयं में क्या पूर्ण है या पूर्णता की क्या निशानी
कह सका है कौन बोलो पूर्णता अपनी जुबानी
सबके अपने भाव हैं और सबकी अपनी जिंदगी
सबके अपने मूल हैं सबकी है अपनी कहानी।।
नित्य मुस्काती मचलती शब्द की अठखेलियाँ
पूछने मुझसे लगीं मेरे अस्तित्व की कहानी।।
है इधर या फिर उधर या दायरे में है कहीं पर
कौन जाने किस घड़ी ये दूर जा बैठे क्षितिज पर
प्रश्न की परछाइयों में क्या उत्तरों की भूमिका
मौन मन उलझा विगत के स्वयं की ही भूमिका पर।।
नित्य समझाकर स्वयं को मौन मन की भूमिकायें
पूछने मुझसे लगीं मेरे अस्तित्व की कहानी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29नवंबर, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें