गीतों का मधुपान करा दो।

गीतों का मधुपान करा दो।  

मिरे सुलगते मनो भाव को
शीतलता का भान करा दो
बिखर न जाये भाव हृदय के
हो, इतना संज्ञान करा दो
प्यासे अब तक कर्ण मेरे हैं
गीतों का मधुपान करा दो।।

चलते पथ पर रहा निरंतर
पग पग उलझा उलझा जीवन
ऋतुओं के मृदु अनुमानों में
बहका बहका था ये उपवन
बरसो बनकर आज घटा तुम
मृदुल नेह का भान करा दो
प्यासे अब तक कर्ण मेरे हैं
गीतों का मधुपान करा दो।।

निर्जल अधरों पर मेरे ये
जाने कैसी प्यास जगी है
मेघ बरसते भींगे सावन
फिर भी कैसी आग लगी है
अंतस के इस सूनेपन में
अपनेपन का भान करा दो
प्यासे अब तक कर्ण मेरे हैं
गीतों का मधुपान करा दो।।

लगता जैसे दूर हो रहे
सपने पलकों से बोझल हो
दूर हो रही परछाईं भी
साँझ ढले पथ में ओझल हो
मन में जो भी आशंकायें
उनको नया विहान दिखा दो
प्यासे अब तक कर्ण मेरे हैं
गीतों का मधुपान करा दो।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
        हैदराबाद
        27दिसंबर, 2021



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