भावनाओं को शब्द का आकार दिया।
सोचा के कुछ आज लिख दूँ सीमायें तोड़कर
लेखनी से आग्रह अरु शब्दों से अनुरोध कर के
आज जीवन के पलों का हँसकर आभार किया
मैंने भावनाओं को शब्द का आकार दिया।।
क्या लिखूँ क्या ना लिखूँ प्रश्न थे मन में हजारों
भाव के संवेदना के गीत में भरकर सितारे
और आँखों में भरी थी वो विरह की वेदनायें
वेदनाओं के सफर को मैंने नव अंदाज दिया
मैंने भावनाओं को शब्द का आकार दिया।।
है विदित मुझको बहुत हैं इस राह में दुश्वारियाँ
मौन अधरों पर रुकी हैं बीती विगत लाचारियाँ
आगत विगत के फेर में आकाश जाने कब गिरा
जो भी गिरा जैसे गिरा मैंने सब स्वीकार किया
मैंने भावनाओं को शब्द का आकार दिया।।
हर दिवस के बाद रातें भोर का प्रारंभ माना
शून्य को हमने यहाँ पर इक मधुर आरंभ माना
बाँधने भुजपाश में पल उम्मीद का आश्रय लिया
और सभी परिवर्तनों को मैंने अंगीकार किया
मैंने भावनाओं को शब्द का आकार दिया।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11नवंबर ,2021
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