द्वंद है मेरे छिड़ा जो।
और लिख दूँ आतमा में द्वंद है मेरे छिड़ा जो।।
तुम कहो मैं भावनाओं को यहाँ कब तक समेटूँ
और जो दिल में छुपा है दर्द वो कब तक सहेजूँ
काल के निश्शेष क्षण में क्या रहा बाकी यहाँ पर
तुम कहो उस काल क्षण को अंक में कब तक सहेजूँ।।
हैं प्रहर छोटे यहाँ पर अरु शब्द हैं कितने बड़े
और पग पग देखता हूँ ये प्रश्न कितने हैं खड़े
तुम कहो वो प्रश्न कह दूँ मौन में मेरे भरा जो
और लिख दूँ आतमा में द्वंद है मेरे छिड़ा जो।।
प्यार के अहसास को उस प्रतिपल हृदय में देखता
और भरकर पीर कितने बस मौन खुद को खोजता
नैन की उठती तरंगें भावनाओं को पुकारें
शब्द की बेचैनियों को है पंक्तियों में खोजता।।
पंक्तियों में भाव जितने वो गीत में सारे जड़े
फिर भाव के आकाश में वो प्रश्न बनकर क्यूँ खड़े
तुम कहो तो आज कह दूँ प्रश्न मन में है भरा जो
और लिख दूँ आतमा में द्वंद है मेरे छिड़ा जो।।
शेष न रह जाये सारे भाव इस व्याकुल हृदय में
और कुछ भी कह न पायें बीतते इस पल समय में
सोचता इस काल में अब रंग ये कैसा भरा है
डूब ना जाये कहीं वो भाव प्रश्नों के प्रलय में।।
काल फिर छल कर न जाये सब भाव रह जायें पड़े
मौन अधरों पर मचलते कुछ शब्द पीड़ा से जड़े
दे रहा हूँ आज मैं सब अंक से तेरे गिरा जो
और लिख दूँ आतमा में द्वंद है मेरे छिड़ा जो।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17अक्टूबर, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें