व्यथा के गीत में उल्लास भरना ही उचित है।
तब व्यथा के गीत में उल्लास भरना ही उचित है।।
कंठ से निकले कभी जो शब्द मन की कह सके ना
वेदना के भाव के अहसास को भी सह सके ना
और सम्मुख हो खड़ा जग मौन पत्थर की तरह जब
आह के किंचित स्वरों के मर्म भी जब सुन सके ना
वेदना समझा न पाओ आह की अवहेलना के
तब व्यथा के गीत में उल्लास भरना ही उचित है।।
चोट जो दिल पर लगी हो जब उसे दिखला न पाओ
बात जो तेरे हृदय में जब उसे समझा न पाओ
शब्द के वो मर्म सारे मौन कुंठित हो रहें जब
और उस पत्थर हृदय को बात जब बतला न पाओ
शब्द भी समझा न पाये सत्य की अवहेलना जब
तब व्यथा के गीत में उल्लास भरना ही उचित है।।
व्याकरण के शब्द भी जब गीत पूरा लिख सके ना
पंक्तियों में भावना को व्यक्त भी जब कर सके ना
छंद के निर्माण में अरु शब्द में विचलन उठे जब
लेखनी भी जब जहाँ पर मुक्त हो कर चल सके ना
व्याकरण समझा न पाये शब्द की अनुवेदना जब
तब व्यथा के गीत में उल्लास भरना ही उचित है।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21नवंबर, 2021
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