मेरे मन की अकथ व्यथा।
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।
सागर की गहराई को क्या
किरणें नाप सकी हैं बोलो
उसके अंतस की हलचल को
लहरें क्या जान सकीं बोलो
तटबंधों को मिले घाव को
फिर कैसे तुम झुठलाओगे
मेरे मन की अकथ व्यथा पर
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।
रातों के उस अँधियारे का
घाव भला किसने देखा है
चंदा की उस शीतलता में
भाव जला किसने देखा है
गिरी दामिनी आशाओं पर
अब कैसे तुम दिखलाओगे
मेरे मन की अकथ व्यथा पर
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।
मन ठहरा उन्मुक्त यहाँ पर
बंधन में कब बँध पाया है
कितने गीत लिखे जीवन ने
क्या अधरों ने सब गाया है
अधरों पर क्यूँ गीत रुके वो
कहो यहाँ क्या कह पाओगे
मेरे मन की अकथ व्यथा पर
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।
भूल गये जो प्रीत पुरानी
साथ भला क्या दे पायेंगे
जिसने मन का दर्द ना समझा
साथ भला क्या चल पायेंगे
छोड़ गये जब बीच राह में
फिर कैसे तुम अपनाओगे
मेरे मन की अकथ व्यथा पर
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19दिसंबर, 2021
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