जीवन में नूतन प्रयोग।
साथी सत्य की राहों में हैं कदम कदम कितने संयोग
लगता जैसे जीवन प्रतिपल करता रहता नवल प्रयोग।।
जीवन मृत्यु के मध्य ये कैसा
पग पग पर संवाद छिड़ा है
सत असत्य के खेमों में भी
हार जीत का वाद छिड़ा है
वाद विवाद भरी जगती में
पग पग पर अगणित अभियोग
लगता जैसे जीवन प्रतिपल करता रहता नवल प्रयोग।।
कभी सजाकर थाल तिलक का
करता जीवन का अभिनंदन
कभी विदाई के क्षण में ये
लगता करता मौन नियंत्रण
मिलन विदाई के जीवन में
पग पग पर बनते संयोग
लगता जैसे जीवन प्रतिपल करता रहता नवल प्रयोग।।
वांछित फल की चाहत में ये
जीवन प्रतिपल विकल रहा है
लिए स्वप्न पलकों में नूतन
कदम कदम ये मचल रहा है
आशाओं अभिलाषाओं में
नित खोजा करते सहयोग
लगता जैसे जीवन प्रतिपल करता रहता नवल प्रयोग।।
मिल जाएगा पुण्य यहाँ पर
यदि मन से मन का गर वंदन
भावों को आकाश मिले अरु
इच्छाओं को अभिनंदन
सबके मन में आस पले अरु
नित्य बने मधुरिम संयोग
साथी लगता जीवन प्रतिपल करता रहता नवल प्रयोग।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
20अक्टूबर, 2021
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