तुम भी बाहर आकर देखो।
संझा का मन डोला है
तुम भी बाहर आकर देखो
चाँद गगन में निकला है।।
कब तक उलझे उलझे रहकर
मन अपना भटकाओगे
कब समझोगे मन भावों को
कब फिर खुद को पाओगे।।
आज मिलो फिर खुद ही देखो
मौसम बदला बदला है
तुम भी बाहर आकर देखो
चाँद गगन में निकला है।।
बँधकर कितने चक्रव्यूह में
गुमसुम गुमसुम रहते हो
आकाशों के घुप्प अँधेरे
पलकों में ले सहते हो।।
खोल पलक को मौन पलों से
जीवन बदला बदला है
तुम भी बाहर आकर देखो
चाँद गगन में निकला है।।
अधरों पर हैं बातें कितनी
आकुल बाहर आने को
अरु दर्पण में जो छवि दिख रही
व्याकुल बाहर आने को।।
छोड़ो सारे किंतु परंतु को
मौसम पिघला पिघला है
तुम भी बाहर आकर देखो
चाँद गगन में निकला है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21दिसंबर, 2021
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