बात हृदय की।
कुछ को मिली मंजिल यहाँ कुछ बिखर कर रह गयीं
है यहाँ पर इक कहानी जो कहो कह दूँ प्रिये
बात जो निकले हृदय से गूँजती कल तक रहे।।
प्रेम के कुछ पुष्प चुन पंथ हमने है सजाये
भाव के व्योम पर हमने लिखी कितनी कथायें
और फिर कितनी लिखी है काव्य में नव भूमिका
गीत में ढल शब्द वो पंक्तियों में मुस्कुराये।।
मुस्कुराये शब्द जो भी तुम कहो कह दूँ प्रिये
बात जो निकले हृदय से गूँजती कल तक रहे।।
वाटिका में हृदय के पिय भाव सुंदर सज रहे
प्रिय अधरों पर तुम्हारे गीत मेरे जँच रहे
कामना अब है यही के मैं प्रेम को नव गान दूँ
और फिर वो कहूँ जो कृष्ण से राधा ने कहे।।
कभी दूर तुमसे न रहें स्वप्न पलकों के प्रिये
बात जो निकले हृदय से गूँजती कल तक रहे।।
फिर चलो इस पंथ पर हम रीत कुछ नूतन रचें
प्रेम के विश्वास के अनुप्रास से पन्ने सजें
जोड़ कर अध्याय नव पीढ़ियों का पथ सँवारे
और रचें नव रीत जो भी इतिहास के पन्ने सजें।।
शब्द के व्योम पर गूँजे गीत सदियों तक प्रिये
बात जो निकले हृदय से गूँजती कल तक रहे।।
©®✒️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
07दिसंबर, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें