आकाश क्यूँ नीचे गिराया।

आकाश क्यूँ नीचे गिराया।  

इक खबर की आस में आकाश क्यूँ नीचे गिराया।।

आस के आकाश पर कुछ मौन चित्र जीवन ने चुने
मोतियों का ले सहारा कुछ हार जीवन ने बुने
ख्वाहिशों के मोतियों को बिखराया बोलो क्या पाया
इक खबर की आस में आकाश क्यूँ नीचे गिराया।।

याद बनकर रह गये वरदान जो थे तुमको मिले
स्वप्न सारे ढह गये अनुभूतियों में जो थे पले
ढह रही अनुभूतियों में स्वप्न फिर से खिल न पाया
इक खबर की आस में आकाश क्यूँ नीचे गिराया।।

वो थी कसौटी प्रेम की अहसास की विश्वास की
थी शब्द के संचार की अरु इक मधुर आभास की
विश्वास जो टूटा यहाँ विश्वास फिर जुड़ न पाया
इक खबर की आस में आकाश क्यूँ नीचे गिराया।।

मृदु शब्दों के हर अर्थ की व्याख्यान थी वो वंदना
थी मगर उलझी न जाने बन मौन क्यूँ संवेदना
इस कदर उलझे यहाँ सब चाह कर सुलझा न पाया
इक खबर की आस में आकाश क्यूँ नीचे गिराया।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09नवंबर, 2021

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...