कितने आँसू बह ना पाये।
आँसू बने पलक पर ठहरे
जाने कितने शूल ह्रदय में
चुभे यहाँ पर आकर गहरे
घाव मिले पर कह ना पाये
कितने आँसू बह ना पाये।।
पग पग संशय के बादल थे
हम भी पर कितने पागल थे
चले कदम दर सपने लेकर
भावों में कुछ अपने लेकर
चाहा लेकिन कह ना पाये
कितने आँसू बह ना पाये।।
घिरा रहा प्रश्नों में जीवन
मरुथल में महकाया उपवन
सहमे उत्तर विश्राम नहीं था
घट घट रीता हृद का मधुवन
रीते हृदय सँभल ना पाये
कितने आँसू बह ना पाये।।
पलकों ने कुछ कहा नहीं पर
आहों में प्रतिकार किया है
मन के टूटे सब भावों को
आँसू का आकार दिया है
सुनी मगर कुछ कह ना पाये
कितने आँसू बह ना पाये।।
यादों के ताखों में कितने
प्रश्न उलझते चले गए हैं
मुड़े तुड़े पन्नों के भीतर
भाव सिमटते चले गए हैं
इतने सिमटे सह ना पाये
कितने आँसू बह ना पाये।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30अक्टूबर, 2021
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