नव विहान।
चल रही बयार हो द्वार पर प्रहार हो
शब्द में घाव हो या चल रहे दाँव हो
तुम निडर हो डटो तेरी यही आन है
तेरा विश्वास ला रहा नव विहान है।।
हो सफल प्रार्थना है बस यही कामना
पूर्ण हो साधना लिए मन में भावना
तुम चलो पंथ पर न कोई व्यवधान हो
है अटल भावना तो शून्य में प्राण है
तेरा विश्वास ला रहा नव विहान है।।
पुण्य ये पंथ हो अरु पुण्य ये ग्रंथ हो
तेरे अधरों पे बस जीत का मंत्र हो
दूर कर पंथ के सारे अवरोधों को
कि मुट्ठी में तेरे खुला आसमान है
तेरा विश्वास ला रहा नव विहान है।।
तेरे हर लक्ष्य में बस धर्म का मान हो
तेरे मन भावों में कर्म ही महान हो
राष्ट्र का भाव हो ना कोई प्रभाव हो
अब लिख रहा जीत का तू नया गान है
तेरा विश्वास ला रहा नव विहान है।।
©®अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18दिसंबर, 2021
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