खुद से दिल बहला लेना।

खुद से दिल बहला लेना।  

जब कोई तेरी बात सुने ना
मन से बातें कर लेना
जब बात किसी से कह ना पाओ
खुद से बातें कह लेना।।

ये माना कितनी बात हृदय में
तेरे घर कर बैठी है
ये माना कितने भाव हृदय में
गहरे छुपकर बैठी है।।

जब मन के भाव निकल ना पायें
खुद को तब दिखला लेना
जब कोई तुझसे बात करे ना
खुद से दिल बहला लेना।।

क्यूँ जली जा रही रात सुनहरी
तारे भी क्यूँ गुमसुम हैं
क्यूँ पिघल रही है शबनम ऐसे
लगता खुद से अनबन है।।

पिय मन का सूनापन समझा कर
खुद से प्रीत लगा लेना
जब तेरा कोई मीत बने ना
खुद को मीत बना लेना।।

फिर नेह किसी से क्या होगा जब
खुद से नेह नहीं होगा
अरु मोह किसी से क्या होगा जब
खुद से मोह नहीं होगा।।

जग से नेह लगाने से पहले
खुद से नेह लगा लेना
जब कहीं अकेलापन तड़पाये
खुद को तुम अपना लेना।।

इस जीवन का ये भेद समझ लो
मन के दर्द कहीं न खोलो
यदि जग से तुझको गरल मिला है
खुशी खुशी उसको पी लो।।

कोई अश्रु पोंछने वाला न हो
खुद ही गले लगा लेना
अरु अपने गीतों में जीवन के
सारा मर्म छुपा लेना।।

जब कभी अकेलापन तड़पाये
खुद से दिल बहला लेना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30नवंबर, 2021




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