भाव पनपे नये प्रीत के गात में।

भाव पनपे नये प्रीत के गात में।  

चाँदनी रात में चाँद के साथ में
भाव की ओढ़नी ओढ़ कर माथ पे
अंक में शब्द आकर ठहर यूँ गये
भाव पनपे नये प्रीत के गात में।।

चाँदनी ओढ़ कर प्रीत ऐसे मिली
पुष्प की पाँखुरि जैसे हो अधखुली
तुम मिले भाव चन्दन महकने लगा
यूँ लगा स्वयं से रात खुशियाँ मिली।।

आलिंगन में परछाईयाँ घुल गयीं
भाव पनपे नये प्रीत के गात में।।

पाँव की झाँझरें गीत गाने लगीं
हाथ की चूड़ियाँ गुनगुनाने लगीं
बिंदिया ने इशारे से सब कह दिया
प्रीत की कोंपलें लहलहाने लगीं।।

रूप के ताप से रात यूँ ढल गयी
भाव पनपे नये प्रीत के गात में।।

रात की रश्मियाँ भी पिघलने लगीं
भाव की बदलियाँ जब मचलने लगीं
थम गया वक्त भी प्रीत के अंक में
जिन्दगी बंदगी में बदलने लगी।।

यूँ मिले खिड़कियाँ खुल गयी रात की
भाव पनपे नये प्रीत के गात में।।

©®✒️अजय कुमार पाण्डेय
            हैदराबाद
            15दिसंबर, 2021

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