गीत मधुर क्या बन पाया है।।
आशाओं के पृष्ठभूमि पर कितने गीत लिखे चुन चुन कर
बोलो केवल लिखने भर से गीत मधुर क्या बन पाया है।।
रंगपट्ट पर चली तूलिका जब जब स्वप्न सजाये सबने
रंग भरे इच्छाओं के अरु नूतन रूप सजाये सबने
रंगों में सज कर बोलो जीवन मुस्काता कब खिल खिल कर
लेकिन केवल खिलने भर से कहो चित्र सुघड़ बन पाया है
बोलो केवल लिखने भर से गीत मधुर क्या बन पाया है।।
दिशाहीन अल्हड़ता से बस कुछ पल का आराम मिला है
ये माना क्षणिक फुहारों से कुछ पल को आराम मिला है
कुछ पल के आरामों से क्या शांति मिली है बोलो खुलकर
कुछ पल के विश्राम से क्या ये जीवन खुलकर जी पाया है
बोलो केवल लिखने भर से गीत मधुर क्या बन पाया है।।
चली कलम जब भी पन्नों पर कितने ही नवगीत लिखे हैं
जाने कितनों के भावों को सुंदर सा मनमीत लिखे हैं
लिखे गीत कितने ही सबने बोलो इक दूजे से मिलकर
पन्नों पर बस छप जाने से गीत मधुर क्या बन पाया है
बोलो केवल लिखने भर से गीत मधुर क्या बन पाया है।।
मन की क्यारी में कितने ही पुष्प खिलाये हैं भावों के
बड़े जतन से सींचा उनको अपनाये हैं सब दावों को
दावों अरु वादों में जीवन कहता आया बस सुन सुन कर
लेकिन केवल सुनने भर से गीत मधुर क्या बन पाया है
बोलो केवल लिखने भर से गीत मधुर क्या बन पाया है।।
विरले ही हैं लोग यहाँ पर जो महाकाव्य रच पाते हैं
संकल्पों के बिन जीवन ये नवगीत कहाँ रच पाते हैं
बिन संकल्पों के जीवन के प्रश्न कहाँ सुलझे हैं खुलकर
लेकिन केवल हल मिलने से प्रश्न सरल क्या बन पाया है
बोलो केवल लिखने भर से गीत मधुर क्या बन पाया है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
24नवंबर, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें