है अधूरा गीत मेरा पूर्ण अब कर दीजिए।
कब तक सिमट कर मैं रहूँगा इक अधूरे गीत सा।।
मैं छपा हूँ पृष्ठ पर ले भावनाओं का समंदर
आस के आकाश पर उम्मीद का लेकर समंदर
कुछ पँक्तियाँ अब तक अधूरी पूर्ण अब कर दीजिए
कब तक सिमट कर मैं रहूँगा इक अधूरे गीत सा।।
हूँ यहाँ गुमनाम सा मैं भूली कहानी की तरह
एक झलक जो देख लो खिल जाऊँ जीवन की तरह
थाम कर अब हाथ मेरा आवाज मुझको दीजिए
कब तक सिमट कर मैं रहूँगा इक अधूरे गीत सा।।
शब्द मिल जाये जो मुझको गीत लिख सकता हूँ मैं
साथ मिल जाये तुम्हारा जीत लिख सकता हूँ मैं
मेरे अधूरे ख्वाब हैं जो पूर्ण अब कर दीजिए
कब तक सिमट कर मैं रहूँगा इक अधूरे गीत सा।।
सोचा था के मैं निखर जाऊँगा लिखने के बाद
पूर्ण हो जाऊँगा मैं पन्नों में सजने के बाद
मेरे अधूरे संकलन को पूर्ण अब कर दीजिए
कब तक सिमट कर मैं रहूँगा इक अधूरे गीत सा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27नवंबर, 2021
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