नाम दोषियों में मैंने पाया।
बात दिल में जो छिपी थी बात दिल की कह न पाया
यूँ है विदित मुझको हमारी वो सभी नाक़ामियाँ
इसीलिये नाम शायद दोषियों में मैंने पाया।।
भाव थे जो भी हृदय के दिल चाहता था बोल दूँ
राह में जंजीर थी जो जंजीर सारे तोड़ दूँ
और लिख दूँ गीत जो गूँजे हृदय की वादियों में
रीत में नवरीत लिख कर वो रीत सारे जोड़ दूँ।।
अफसोस मन की भावना को व्यक्त मैं कर न पाया
इसीलिये नाम शायद दोषियों में मैंने पाया।।
धड़कनों ने गीत गाकर मौन को आवाज दी है
साँस की सरगम सुरीली जिंदगी को साज दी है
त्याग कर प्रतिबंध सारे था लिखा इक गीत मैंने
और अधरों को लुभाये वो सुरीली राग दी है।।
आह अधरों पर सुरीली रागिनी सजा ना पाया
इसीलिये नाम शायद दोषियों में मैंने पाया।।
है सभी स्वीकार मुझको जो मुझे शायद मिला है
है नहीं अफसोस कोई और ना कोई गिला है
वक्त का ये दोष है या फिर है मिरी नाक़ामियाँ
ये दर्द का अहसास सारा दर्द पाकर ही खिला है।।
कंठ तक आकर रुके पर गीत खुलकर गा न पाया
इसीलिये नाम शायद दोषियों में मैंने पाया।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
07नवंबर, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें