तुम इनको परिभाषित कर दो।

तुम इनको परिभाषित कर दो।  

अपने अधरों की पंखुड़ियों से छू कर मेरे भावों को
अपने मृदु आलिंगन में भरकर देकर अपनी छाहों को
प्राण वायु भर कर गीतों को तुम इनको स्पंदित कर दो
जो भी गीत लिखे हैं मैंने तुम इनको परिभाषित कर दो।।

भोर रश्मि की किरणों से ले है लिखी तरंगें जीवन की
आशा के अनुप्रासों से ले है लिखी उमंगें उपवन की
चंदा सी शीतलता भर दो तुम इनको अनुमोदित कर दो
जो भी गीत लिखे हैं मैंने तुम इनको परिभाषित कर दो।।

कुछ स्वप्न सँवारे कोमल से आशाओं के नील गगन में
कुछ भाव उकेरे हैं हमने मृदु अपने हिय के मधुवन में
मधुवन में मधुमास खिलाकर तुम इनको संभाषित कर दो
जो भी गीत लिखे हैं मैंने तुम इनको परिभाषित कर दो।।

छंद छंद में भाव हृदय के पंक्ति पंक्ति में है अपनापन
पृष्ठ पृष्ठ पे चित्र तुम्हारा हरता मन का ये सूनापन
सूनेपन में गीत सजाकर जीवन को आनंदित कर दो
जो भी गीत लिखे हैं मैंने तुम इनको परिभाषित कर दो।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        11नवंबर, 2021

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