प्रेम का प्रसार।
सुरीली तान छेड़ती हवाओं की नर्मियाँ
सौम्यता के भावों का प्रेम का प्रसार है
अभिसार को व्यग्र हैं झूमती ये बदलियाँ।।
अंक में प्रकृति के ये पुण्य चमत्कार है
छू रहा जो भावों को प्रेम का प्रसार है।।
पंछियों के कलरवों से गूँजती वादियाँ
नदियों के प्रवाह में झूमती ये वादियाँ
पर्वतों के वृक्षों पर ये सूर्य की मधुर छुअन
शून्यता को भर रही हैं प्रेम की क्यारियाँ।।
पंथ पंथ पुण्य है भावों का श्रृंगार है
छू रहा जो भावों को प्रेम का प्रसार है।
खोल चक्षु के पटों को देख आ रहा जो कल
शांत चित्त भाव हों ये पुण्यता ना हो विकल
अंक अंक प्रीत है अरु शब्द शब्द गीत है
सुन, गा रही हैं रश्मियाँ बादलों से निकल।।
अंतर्मन में गूँजता गीता का सार है
छू रहा जो भावों को प्रेम का प्रसार है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22दिसंबर, 2021
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