मौन मृदु रस घोलता है।
भाव की अँगड़ाइयां हों
और तेरी राह में जब
पुण्य की परछाइयाँ हों
तब मुखर हो गीत मन का
बात दिल की बोलता है
और जीवन के पलों में
मौन मृदु रस घोलता है।।
जब व्यथा के गीत में भी
प्रिय शब्द का संचार हो
जब हृदय की भावना में
प्रिय नेह का संसार हो
तब मुखर हो प्रीत मन से
भाव के पट खोलता है
और जीवन के पलों में
मौन मृदु रस घोलता है।।
जब नजारे झूम कर के
गीत की महफ़िल सजायें
जब सितारे झूम कर के
रात का आँचल सजायें
तब मुखर हो रश्मियाँ ये
गीत में रस घोलती हैं
और जीवन के पलों में
मौन मृदु रस घोलती हैं।।
जब हृदय की भावनायें
मुक्त होकर गीत गाये
जब मचलती कामनायें
प्रीत को भी जीत जायें
तब मुखर हो गीत मन के
कान में रस घोलता है
और जीवन के पलों में
मौन मृदु रस घोलता है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30नवंबर, 2021
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