मन गीत नहीं वो गा पाया।

मन गीत नहीं वो गा पाया।  

जाने कितने गीत कंठ में व्याकुल अधरों पर आने को
लेकिन सरगम ना सजने से मन गीत नहीं वो गा पाया।।

खामोश निगाहों ने ढूँढा प्रतिपल प्रतिक्षण इक अपनापन
उम्मीदों की सेज सजाया और बुहारा मन का आँगन
पल पल कितने जतन किये हैं इस जीवन का सुख पाने को
जाने क्यूँकर सज ना पाया वो निज नयनों का सूनापन।।

नयनों का वो निज सूनापन लालायित सब कह जाने को
लेकिन सरगम ना सजने से मन गीत नहीं वो गा पाया।।

निज बाहों में प्रतिपल सबने खिलता अंबर भरना चाहा
अंबर के सूने भावों को गीतों में यूँ कहना चाहा
मिलन यामिनी के पल में भी जितने स्वप्न बुने जीवन ने
जीवन के सारे भावों को मन ने कहना सुनना चाहा।।

मन का वृंदावन मधुमासित उल्लासित सब कह जाने को
लेकिन सरगम ना सजने से मन गीत नहीं वो गा पाया।।

गोधूली बेला में जीवन सूरज के ढलने से पहले
संध्या प्राची की दुल्हन सी आयी मन भावों को हरने
इच्छाओं ने पंख पसारे आशाओं ने भोजपत्र लिखे
नयनों की भाषा पढ़कर के गीत मधुर अधरों ने पहने।।

अधरों पर जो भी गीत सजे लालायित सब कह जाने को
लेकिन सरगम ना सजने से मन गीत नहीं वो गा पाया।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18नवंबर, 2021


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