लौट आओ तुम प्रिये।
पंक्ति का आकार पाकर गीत मृदु सजने लगे हैं
गीत को आधार मिलता और प्रेम को आकार फिर
के लौट आओ तुम प्रिये ले प्रेम का संसार फिर।।
तुम गए जबसे यहाँ से जिंदगी ही खो गयी है
मौन हैं अब भाव सारे बंदगी भी खो गयी है
आस को आकार मिलता अरु शब्द को व्यवहार फिर
के लौट आओ तुम प्रिये ले प्रेम का संसार फिर।।
बिन चाँदनी तुम ही कहो इस रात का क्या मोल है
जब पलकों से ही गिर गए फिर अश्रु का क्या मोल है
भाव को संचार मिलता अरु आँसुओं को प्यार फिर
के लौट आओ तुम प्रिये ले प्रेम का संसार फिर।।
मौन जब लहरें हुईं तो क्या करे बोलो किनारा
टूटते तटबंध हों जब कौन देगा फिर सहारा
तुम बनो अधिकार मेरा अरु ले चलो उस पार फिर
के लौट आओ तुम प्रिये ले प्रेम का संसार फिर।।
सुन पलक में नीर भरकर क्या कह रही हैं सिसकियाँ
हैं घिरे बादल हृदय में अरु गिर रही हैं बिजलियाँ
क्या कहो अपराध मेरा बस बोल दो इक बार फिर
के लौट आओ तुम प्रिये ले प्रेम का संसार फिर।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
23अक्टूबर, 2021
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