लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।

लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।   

शब्द कितने ही जगत में गीत का मधुवन सजाते
लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।।

हर तरफ फैली हुई है गीत की मृदु कल्पनायें
शब्दों में उतरी हुई मन की सारी भावनायें
अब हो विरह के गीत या फिर हो मिलन के पलों का
सौम्य भावों में सिमटते शब्द की हों कामनायें।।

संतुलित हैं शब्द जो वो पंक्तियों को हैं सजाते
लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।।

शब्द की ना भूमिका जो भावनाओं को नकारे
क्या लिखेगा गीत फिर जो शब्द ही ना हों सहारे
जो शून्यता हो भाव में प्रेम भी जीवंत ना हो
फिर रुकेगी नाव कैसे प्रेम की नदिया किनारे।।

कोशिशें ही गीत की पुण्य आत्मा को हैं खिलाते
लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।।

पूज्य हैं सब शब्द सारे पृष्ठ पर जो भी छपे हैं
हैं समर्पित भाव सारे गीत में जो भी सजे हैं
हो सहज संयोग या फिर संप्रेष्य की पृष्ठभूमी
जो लिखे हों गीत में वो मुक्त भावों में दिखे हैं।।

सत्य अरु संयोग सारे हृदय में है खिलखिलाते
लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।।

©®✍️अजय कुमार पाण्डेय
           हैदराबाद
           16दिसंबर, 2021

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