जाने कैसा राग दे रहा।

जाने कैसा राग दे रहा।  

दूर देश में बैठा कोई बेमतलब आवाज दे रहा
अपने कुंठित भावों से जाने कैसा राग दे रहा।।

भारत को जो समझ न पाए आज गवाही देने आए
जिसने इसको कभी न समझा दुनिया को समझाने आये
घिसे पिटे कुछ तर्कों से वो बेमतलब संवाद दे रहा
अपने कुंठित भावों से जाने कैसा राग दे रहा।।

सोच किसी की गंदी हो जब राष्ट्र भला क्या कर सकता है
ज्ञान किसी का किंचित हो जब मान भला क्या मिल सकता है
नैतिकता का बोध नहीं पर नैतिकता की बात कह रहा
अपने कुंठित भावों से जाने कैसा राग दे रहा।।

मूल भाव को समझ न पाये दूजे पर क्यूँ दोष मढ़े वो
संस्कृति को जब समझ न पाये उस पर कैसा रोष करे वो
संस्कृतियों का मर्म ना समझा जाने कैसा ज्ञान दे रहा
अपने कुंठित भावों से जाने कैसा राग दे रहा।।

अभिव्यक्ति पर रोक लगी है दूर कहीं पर खड़ा रो रहा
यही बात बतलाने को वो अभिव्यक्ति का नाम दे रहा
लगता बुझती राखों पर चिंगारी रख आग दे रहा
अपने कुंठित भावों से जाने कैसा राग दे रहा।।

राष्ट्र का मतलब वो जानता जिसने जीवन जाना है
जीवन वो ही धन्य हुआ है जिसने भारत पहचाना है
वो क्या जाने भारत को जो दूर खड़ा हो दाग दे रहा
अपने कुंठित भावों से जाने कैसा राग दे रहा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21नवंबर, 2021

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