काशी-नेह का सुंदर सवेरा।

काशी-नेह का सुंदर सवेरा।  

इस धरा के पृष्ठ का है कौन सुंदर वो चितेरा
जिसने फैलाया जगत में नेह का सुंदर सवेरा।।

बादलों के श्वेत पट से ओस की बूँदें गिरी जब
इस धरा की कोख पर वो मोतियों सी हैं खिली तब
भोर की किरणें मचलकर दृश्य नूतन हैं सजाती
और पंछी भी सुरीली तान में हैं गुनगुनाती।।

इस धरा के पृष्ठ पर किसने सजाया है बसेरा
जिसने फैलाया जगत में नेह का सुंदर सवेरा।।

गंग की इस धार में हैं नाचती किरणें मचलकर
कह रही हैं आज सुन लो शब्द वो सारे सँभलकर
घाट के उस छोर से इस छोर तक है बंदगी
कह रही लहरें मचलकर हैं बस यहीं पर जिंदगी।।

घाट के इस पृष्ठ का है कौन वो सुंदर चितेरा
जिसने फैलाया जगत में नेह का सुंदर सवेरा।।

मंत्र के उच्चारणों से गूँजती खुशियाँ यहाँ पर
देव गीतों से भजन से गूँजती गलियाँ यहाँ पर
वेद के उत्तम स्वरों से भोर होती है सुहानी
अरु साँझ के धुँधलके में आरती होती सुहानी।।

वेद के इस रूप का है कौन वो सुंदर चितेरा
जिसने फैलाया जगत में नेह का सुंदर सवेरा।।

देव की है भूमि काशी मोक्ष है मिलता यहाँ पर
शब्द जीवन मृत्यु का सब साथ में चलता यहाँ पर
कुंभ में जीवत्व के जो दूर करती है उदासी
ऐसा खुशियों का नगर देवताओं की है काशी।।

इस धरा पर मोक्ष का है कौन वो सुंदर चितेरा
जिसने फैलाया जगत में नेह का सुंदर सवेरा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25नवंबर, 2021



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