केवल दिल का हाल न पूछो।

केवल दिल का हाल न पूछो

कैसे कैसे मंजर देखे इन आँखों ने साँझ सवेरे
हँसते रोते जीवन देखे इन गलियों में बहुतेरे
क्या खोया क्या मिला यहाँ पर पास कभी तुम आकर देखो
दूर खड़े रहकर के केवल दिल से दिल का हाल न पूछो।।

कैसे बीते दिवस हमारे कैसे बीती रातें सारी
पग पग कितने कष्ट सहे हैं संघर्ष अभी तक है जारी
संघर्ष भरे इस जीवन के छालों को तुम आकर देखो
दूर खड़े रहकर के केवल दिल से दिल का हाल न पूछो।।

मन के सूने पनघट पर अब नहीं खनकती कोई पायल
नर्तन करते भाव अकेले बरसे ना सुधियों के बादल
मेरे मन को पुनः समझने सुधियों में ही आकर देखो
दूर खड़े रहकर के केवल दिल से दिल का हाल न पूछो।।

हर रोज सिमटते देखा है टुकड़ा टुकड़ा धूप यहाँ पर
हर रोज बरसते देखा है टुकड़ों में बादल को आकर
टुकड़ों वाली बारिश इस में कभी मचल कर तुम भी देखो
दूर खड़े रहकर के केवल दिल से दिल का हाल न पूछो।।

कभी यहाँ पर तुम भी आओ बैठो कुछ पल साथ हमारे
सुनो हमारे मन की पीड़ा समझो क्या हैं भाव हमारे
मन के सूने गलियारे में चार कदम तुम चलकर देखो
दूर खड़े रहकर के केवल दिल से दिल का हाल न पूछो।।


©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       19अक्टूबर, 2021

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