पुनर्मिलन के उस पल में।
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।
थे चित्र कितने नाच उठे उस रोज मानस पटल पर
मौन क्या कुछ कह गये थे बंद अधरों ने मचल कर
उस घड़ी सूने डगर पर इक कारवाँ था चल पड़ा
रिश्तों की खामोशियों की बर्फ बिखरी थी पिघलकर।।
मौन पल में भाव सारे फिर लगे नवगीत रचने
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।
गोधूलि बेला में क्षितिज पर सूर्य देखो झुक रहा
मृदु रात की आगोश में हो शांत देखो छुप रहा
बन रहे हैं भाव कितने पल पल मृदुल स्पंदनों के
और ऋतुओं की छमक में पिय भाव हिय के झुक रहा।।
भावनाओं की शिला पर वो शब्द सब छपने लगे
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।
चाँदनी किरणें मचलकर श्रृंगार फिर करने लगीं
अरु पुष्प अधरों से झरे तो शून्यता भरने लगी
भर लिया भुजपाश में पल गीत कुछ मचले वहाँ पर
मन की वीणा में मधुर सी तरंगिनी बजने लगी।।
पंखुरी फिर तब झरे थे पुष्प की मंदाकिनी से
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।
था वो कोई स्वप्न या फिर पूर्ण तपस्या हुई थी
या मिला वरदान मुझको जो पूर्व में खोई हुई थी
स्वाति की बूँदें पड़ीं जब भावनाओं की धरा पर
जग उठी संवेदनाएँ जो कभी सोई हुई थी।।
भाव सब खिलने लगे थे जो रचे थे कल्पना ने
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।
©®✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14दिसंबर, 2021
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