मन करता नित नूतन नर्तन।
जैसे मधुवन में करता है भँवरा नित नूतन गुंजन।।
पड़े रश्मि किरणें पुष्पों पर ऐसा रूप तुम्हारा है
खिली खिली कलियों ने जैसे लगता रंग निखारा है
अधरों के कंपन ने जैसे राग भैरवी गायी है
बादल के झुरमुट से जैसे धूप सुनहरी आयी है।।
मेरा मन आह्लादित करता रंग रूप का ये संगम
जैसे मधुवन में करता है भँवरा नित नूतन गुंजन।।
तेरे कदमों की आहट से धरती भी बलखाती है
उड़े धूल चंदन बन कर के उपवन को महकाती है
तेरी परछाईं से छूकर पिय मृदु भाव पनपते हैं
जैसे भोजपत्रों पर कोई गीत नया लिख जाती है।।
तेरे नुपुरों से सजता है निज मन का सूना आँगन
जैसे मधुवन में करता है भँवरा नित नूतन गुंजन।।
रति पति के सब भाव मनहरे तेरी पलकों में सजते
नख से शिख तक जो भी पहने तुझ पर हैं सारे सजते
दृष्टि भाव के छुअन मात्र से सिहरन मन में आती है
नया अर्थ पाता है जीवन जब जब हम तुझसे मिलते।।
तेरे मेरे मन भावों का जाने कैसा है संगम
जैसे मधुवन में करता है भँवरा नित नूतन गुंजन।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29नवंबर, 2021
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