गीतों को न भूल जाना।

गीतों को न भूल जाना।  

चुन चुन कर के शब्द शब्द
नवगीत मैंने है बनाया
और पिरोया भावों को 
फिर छंद को मैंने रिझाया
तब लिखे कुछ गीत हमने
मृदु आस का भरकर खजाना
है यही अनुरोध तुमसे
उन गीतों को न भूल जाना।।

सूर्य का पथ थक चले जब
अरु रश्मि ओझल हो रही हो
उम्र के उस मोड़ पर जब
ये साँस बोझल हो रही हो
भावनाओं को समझ कर
प्रीत से भरना खजाना
है यही अनुरोध तुमसे
उन गीतों को न भूल जाना।।

हम चले थे गीत लेकर
इस जगत के मन को रिझाने
मौन को आवाज देकर
प्रिय कामनाओं को सजाने
जो लगी ठोकर जगत से
उसको यहाँ फिर क्या दिखाना
है यही अनुरोध तुमसे
उन गीतों को न भूल जाना।।

साथ में कितने चले थे
पीछे कितने छूट गये हैं
मील के पत्थर सभी वो
कैसे कह दूँ रूठ गये हैं
चाह यश की कब मुझे थी
और कब थी कोई कामना
है यही अनुरोध तुमसे
उन गीतों को न भूल जाना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23दिसंबर, 2021

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