मधुप की अभिलाषा।

मधुप की अभिलाषा।  

सोच रहा है आज मधुप पुष्प का जीवन सँवारुँ
झूम कर नाचूँ आज मैं प्रीत का आँगन बुहारूँ।।

माँगता है भोर से नव रूप की मोहनी आशा
अरु उषा से अरुण पीत रंगों की शोभती आभा
कर रहा विनती सिंधु से आसमानी रंग भर दे
और मिटा दे हृदय से डूबती उतरती निराशा।।

सोच रहा है आज मधुप आस से जीवन सँवारुँ
झूम कर नाचूँ आज मैं प्रीत का आँगन बुहारूँ।।

झूम कर चूमता पुष्प वो भरता परागकणों को
संग्रहित करता अंक में नेह के मीठे क्षणों को
अंजुरि भर गंगा जल पलकों में सपनों की लाली
श्वेत कमल सा भाव लिए पूजता जीवन पलों को।।

सोच रहा है आज मधुप पुष्प में खुद को मिला लूँ
झूम कर नाचूँ आज मैं प्रीत का आँगन बुहारूँ।।

प्रकृति के भित्तचित्र पर रंगों की मोहक आभायें
बैठ शिखर अभिलाषा के पुण्य मचलती आशायें
राग, द्वेष, मद मोह छोड़ जीवन के पिय आँगन में
और भरे निज गुंजन से गीतों में नव गाथायें।।

सोच रहा है आज मधुप जीवन का नव रूप निखारुँ
झूम कर नाचूँ आज मैं प्रीत का आँगन बुहारूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28नवंबर, 2021

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