हृदय के भाव को आश्रय मिला है।
यूँ लगा जैसे हृदय के भाव को आश्रय मिला है।।
भोर की आगोश में दिन का उजाला मुस्कुराये
रश्मि किरणों में मगन हो मन का मयूरा गुनगुनाये
एक झोंका जब हवा का खोल पट वातायनों का
कान में मधु घोल दे अरु भोर का पथ खिलखिलाए।।
रश्मि का आभार पाया जीत को आशय मिला है
यूँ लगा जैसे हृदय के भाव को आश्रय मिला है।।
साँझ का पट खोल कर के चाँद कुछ ऐसे मिला है
ओट में आँचल के जैसे रूप दुल्हन का खिला है
अंक में मधुमास के कुछ रंग से भरने लगे हैं
शब्द के श्रृंगार से नव पुष्प अधरों पर खिला है।।
प्रीत ने श्रृंगार पाया कामना को बल मिला है
यूँ लगा जैसे हृदय के भाव को आश्रय मिला है।।
साँस की सारंगियों ने गीत है कुछ गुनगुनाया
धड़कनों ने राग छेड़ा यामिनी को है सजाया
चाँदनी खिलकर यहाँ पर कर रही हमको इशारे
आस के आकाश ने है पंथ पुष्पों से सजाया।।
अब निराशा के प्रहर बस चंद लम्हों के बचे हैं
मन निलय की भावना को मोह का आशय मिला है
यूँ लगा जैसे हृदय के भाव को आश्रय मिला है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25नवंबर, 2021
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