सुधियाँ जिनके द्वार न आईं।

सुधियाँ जिनके द्वार न आईं।  

शब्दों में आकाश उतारा, अंजुलि भर कर पुष्प चढ़ाया
अर्ध्य चढ़ाया मंत्र उचारा, पग पग है आभार जताया
कर जोड़े हर बार खड़ा वो, बोलो कब उसकी सुध आई
ऐसे भी कुछ लोग यहाँ हैं, सुधियाँ जिनके द्वार न आई।।

पलकों में ले स्वप्न सुनहरे, बस आश्वासन में जिया किया
घनी रात हो या उजियारा, बस अनुशासन में जिया किया
मिला दिलासा पग पग उसको, वादों का आशीष मिला है
निज पलकों में सपने लेकर, बस सबके मन की सुना किया। 

अपने भावों को पुचकारा, सपनों में उम्मीद जताई
ऐसे भी कुछ लोग यहाँ हैं, सुधियाँ जिनके द्वार न आई।।


कितने जीवन बीत गए हैं, राह जोहते उजियारों की
रात रात भर जाग जाग कर, बातें करती मृदु तारों की
आशाओं अरु अभिलाषा को, पर मिला यहाँ अवकाश कहाँ
वीथी पर लिख डाले कितने, बीती बातें व्यवहारों की।

वीथी पर कुछ प्रश्न सिमटते, नजरें जिन पर जा ना पाईं
ऐसे भी कुछ लोग यहाँ हैं, सुधियाँ जिनके द्वार न आई।।


बोलो क्या अपराध किया है, दिनकर जो नाराज हुआ है
सूरज, चंदा, तारों ने क्यूँ, उनसे क्या अवकाश लिया है
चलो खिलायें नव पुष्प वहाँ, नव वितान का सूरज लायें
कुटिया के कोनों में झाँकें, खुशियों के नव दीप जलायें।

नव गीत लिखें उन विषयों पर, जिनकी अब तक याद न आई
अपनायें उस जीवन को हम, सुधियाँ जिनके द्वार न आई।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15अक्टूबर, 2021



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...