मन के भाव उचारूं।

मन के भाव उचारूं।  

मनो भाव की कौन दशा को
गीतों में मैं आज उतारूँ
शब्द कहाँ से लाऊँ बोलो
जिनसे मन के भाव उचारूं।।

पल पल छिन छिन जीवन के सब
मृदु मधु रह रह रीत रहे हैं
कैसे कह दूँ आज कहो तुम
जीवन कैसे बीत रहे हैं।।

तुम जो साथ नहीं तो बोलो
पृष्ठों में क्या भाव उतारूँ
शब्द कहाँ से लाऊँ बोलो
जिनसे मन के भाव उचारूं।।

कहने को तो लाखों अपने
अपना कौन नहीं मैं जानूँ
दूर क्षितिज तक चले साथ जो
बोलो कैसे मैं पहचानूँ।।

तुम से ही सब आस जुड़ी है
तुम्हीं कहो अब किसे पुकारूँ
शब्द कहाँ से लाऊँ बोलो
जिनसे मन के भाव उचारूं।।

इस जीवन मे जो कुछ पाया
सब में तेरा वरदान प्रभू
बस तेरा आशीष मुझे हो
और नहीं कोई चाह प्रभू।।

तुम पर छोड़ दिया हूँ सब कुछ
जीतूँ मैं या सब कुछ हारूँ
कौन यहाँ अब मिरा सहारा
तुम ही बोलो किसे पुकारूँ।।

मनो भाव की कौन दशा को
गीतों में मैं आज उतारूँ
शब्द कहाँ से लाऊँ बोलो
जिनसे मन के भाव उचारूं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
        हैदराबाद
        28दिसंबर, 2021

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