जिसमें याद तुम्हारी आये गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।


जिसमें याद तुम्हारी आये
गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।

मन में चाहे भाव उमड़ कर
पल पल मुझको तड़पायें
चाहे पलकों की ड्योढ़ी पर
यादें आँसू बन बह जायें
अनायास भी नाम तुम्हारा
अधरों पर मैं ना लाऊँगा
जिसमें याद तुम्हारी आये
गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।

साँझ ढले उस ताल किनारे
कितने सपने देखे हमने
आती जाती उन लहरों से
कितनी बातें सीखी हमने
जिस तल मन को घाव मिला हो
कभी नहीं मैं फिर जाऊँगा
जिसमें याद तुम्हारी आये
गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।

नयी दिशायें नयी रीतियाँ
नूतन पथ जीवन का होगा
जब रिश्तों ने मन को तोड़ा
और नहीं अब मंथन होगा
आज पुरानी उन यादों में
मन को मैं ना ले जाऊँगा
जिसमें याद तुम्हारी आये
गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
        हैदराबाद
        29दिसंबर, 2021


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